मंदिर आंदोलन के साथ झारखंड में बढ़ी भाजपा, इस वजह से और मजबूत हुई पार्टी
अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना से जुड़े आंदोलन व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दे ने भाजपा के कैडरों को जोड़ने में मदद की। साल 1989 में हुए चुनाव से ठीक पहले केंद्र की राजीव गांधी की सरकार ने मस्जिद का ताला खोल पूजा की इजाजत दी थी, लेकिन चुनाव के दौरान भाजपा ने संसद के अध्यादेश या समझौते के जरिए राम मंदिर का मुद्दा उठाया तो इसका बड़ा प्रभाव पड़ा। 1989 चुनाव में भाजपा ने इस मुद्दे को उठाया। असर यह रहा कि संयुक्त बिहार में पहली बार भाजपा ने कमल के सिंबल पर आठ सीटों पर जीत दर्ज की, उसमें से पांच सीटें वर्तमान के झारखंड से मिली थीं।
आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद हुए चुनाव में भी बढ़ा वोट
साल 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली थी। रथ यात्रा को रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने योजना बनाई। लेकिन, स्थिति को देखते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया। रथ यात्रा बिहार से गुजरनी थी, तब बिहार में लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली जनता दल की सरकार थी। लालू प्रसाद की सरकार ने बिहार में रथ यात्रा को रोकने और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने की योजना बनाई। जब रथयात्रा समस्तीपुर पहुंची तो आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनकी गिरफ्तारी में तत्कालीन आईएएस अधिकारी राजकुमार सिंह (आरके सिंह) और एसपी रामेश्वर उरांव की बड़ी भूमिका थी।
आरके सिंह वर्तमान में भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं, जबकि रामेश्वर उरांव झारखंड सरकार में मंत्री हैं। गिरफ्तारी के बाद समस्तीपुर से ही आडवाणी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिससे केंद्र की सरकार गिर गई थी। उस दौरान कार सेवा की घटना भी अयोध्या में हुई। साल 1991 में बाबरी विध्वंस की पृष्ठभूमि में जब चुनाव हुए, तब भाजपा ने फिर से अपने वोट प्रतिशत में इजाफा किया। भाजपा को 1991 के चुनाव में 15.9 फीसदी वोट मिले। उस चुनाव में भाजपा की ओर से धनबाद से रीता वर्मा, खूंटी से कड़िया मुंडा, लोहरदगा से ललित उरांव, रांची से रामटहल चौधरी और पलामू से रामदेव राम सांसद चुने गए।
वहीं, 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव हुए तो पार्टी का वोट प्रतिशत 33 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन तब पार्टी महज एक सीट कोडरमा पर ही जीत दर्ज कर सकी। तब यूपीए सरकार केंद्र में सत्ता में आयी थी।